मोत के सौदागर
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लेख
विषय- कोरोना कोविड में कालाबाजा
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लेख
विषय- कोरोना कोविड में कालाबाजारी
मौत के सौदागर
“द्वारे खड़ी कर रही इंतजार अर्थी
बड़ी लंबी लगी है लाइन कब्रगाहों में
सांसो का हो रहा व्यापार दविंदर
आज बोली लगी मुर्दों की अस्पतालों में
विश्व में त्राहि-त्राहि मची हुई है|
मनुष्य कटे वृक्ष की तरह गिर रहे हैं | एक सांस आने के बाद अगली सांस नसीब होगी कि नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है |
पिछले वर्ष 2020 से अब तक विश्व में करोड़ों लोग कोविड कोरोना 19 की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं | जब नया-नया वायरस का संक्रमण आया था , तब लगा था कि पृथ्वी पर पाप बढ़ गया है| सब एकजुट होकर रहने लगे थे |
हर व्यक्ति एक- दूसरे की मदद के लिए हाथ बढ़ा रहा था |
कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो सब बीमारी से जूझने और उससे निजात पाने की कोशिश में लगे हुए थे |आस -पड़ोस वालों का ध्यान रखने , कथा -कीर्तन, लंगर लगवा कर सब प्रायश्चित कर रहे थे | और उम्मीद थी कि सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जाएगा |
लेकिन जाने कहां से कोरोना की दूसरी लहर आते-आते भ्रष्टाचार की हवा बहने लगी| दवाइयों की कालाबाजारी , ऑक्सीजन की कालाबाजारी ,इंजेक्शन की कालाबाजारी |
समाज व प्रशासन दोनों इन काला बाजारियों के आगे फेल होते हुए नजर आ रहे हैं |
संवेदना का यूं मर जाना और मरते व्यक्ति से उसका अधिकार छीन कर अपनी तिजोरी भर लेना |कौन सी मानवता का उदाहरण पेश कर रहे हैं हम मनुष्य |
गिद्ध मास को नोच – नोच कर खाता है लेकिन वह भी जानवर के मरने का इंतजार करता है | लेकिन यहां विडंबना देखिए बीमारी में जहां डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है | उन पर आंखें मूंद कर विश्वास किया जाता है | क्या भगवान पर भला शक करता है कोई? नहीं ना.. लेकिन आज कल की तस्वीर उलट है | डॉक्टर मरीज को बचाने में दिन – रात एक कर देते हैं लेकिन देश के प्रख्यात न्यूरो सर्जन को पुलिस ने रेमडेसिविर के 70 इंजेक्शन और 36 लाख रुपए नगद के साथ पकड़ा है वह ₹48 हजार रुपये में एक इंजेक्शन बेच रहे थे | यह डॉक्टर हजरत निजामुद्दीन के रहने वाले हैं | और इनका नाम मोहम्मद अल्तमश है |यह एम्स में डॉक्टर रहे हैं |
आप इन्हें गिद्ध नहीं कहेंगे , क्योंकि यह जानवर का अपमान होगा |
इसी तरह सूरत के डॉक्टर हितेश डाबी और डॉक्टर साहिल चौधरी भी रेमदेसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करते गिरफ्तार हुए| कोर्ट ने उन्हें 15 दिन तक कोविड-19 हॉस्पिटल में ड्यूटी करने की सजा सुनाई है|
ऑक्सीजन जीव जगत के लिए अनिवार्य वायु है | यदि एक क्षण के लिए भी यह वायुमंडल से गायब हो जाए तो आधी सृष्टि खत्म हो जाएगी | ऑक्सीजन जिसे प्रकृति ने हमें मुफ्त का उपहार दिया और हम अज्ञानी मानव ने वृक्ष काटकर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चला ली | आज उसका भी व्यापार और कालाबाजारी जोरों पर है |
लोग एक – एक सांस के लिए संघर्ष कर रहे हैं | परिवार के सदस्य अपनों को बचाने की जद्दोजहद में भूखे – प्यासे लाइनों में खड़े हैं| किसी को ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए | किसी को किट तो किसी को बस कुछ सांसे भर हवा |
लेकिन विडंबना देखिए, प्रकृति ने जिसे धरा से अंबर तक मुफ्त का उपहार दिया है उसे ही बंद डब्बे में पाने के लिए लोग बिलख रहे हैं | सड़कों पर ,अस्पताल में, एंबुलेंस, कार में निरीह – बेबस एक – एक सांस के लिए बिलख रहे हैं | बिना पानी की मछली की तरह तड़प – तड़प कर सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं | वहीं कुछ स्वार्थी इस आपदा के समय में अपना मुनाफा कमाने में लगे हैं|
सबसे ज्यादा संकट इस समय पर जीवनदायिनी वायु का है | और इससे कमाने वाले अधर्मियों की बाढ़ सी आई है |
अस्पताल में बिस्तर का अभाव तो है ही, बिल इतने ज्यादा आ रहे हैं कि लोग गुलामों की तरह खुद बिक रहे हैं अपनों को बचाने की खातिर | लेकिन यहाँ भी विडंबना देखिए कि लाखों रूपये खर्च कर खुद को बेच कर अंत में कफन में लिपटी लाश मिल रही है|
लकड़ी -कंडा ,शमशान ,एंबुलेंस, हार -फूल ,नारियल सभी सोने के भाव बिक रहे हैं|
इंसानियत के नाम पर धब्बा इन कालाबाजारियों को सोचना चाहिए कि आखिर वह भी एक दिन इसी सफर पर जाएंगे ,तब उन्हें अपने कर्मों का जवाब देना पड़ेगा | सिर्फ उन्हें ही नहीं उनकी संतानों को भी इस कर्म की सजा मिलेगी| क्योंकि वह अपने परिवार को और बच्चों को हैवानियत का भागीदार बना रहे हैं |
लाशों के ढेर पर व्यापार करने वाले बेईमानों की आत्मा मर चुकी है | उजड़ते परिवारों , बिलखते दुधमुंहे बच्चों के मुख से निवाला छीन कर कुत्सित प्राणी सिर्फ अपना मुनाफा कमा रहे हैं |
खुद के सिर पर डोलता काल का बवंडर उन्हें नजर नहीं आ रहा|
पिछले साल से लोगों के काम – धंधे बंद पड़े हैं |लोग आर्थिक रूप से पहले ही टूटे हुए हैं | वहां इस तरह सांसों के नाम पर और मुर्दों को जलाने के नाम पर होते धोखे के लिए लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है | उन्हें समझना होगा कि वस्तुओं की कृत्रिम रूप से जमाखोरी की गई है, जिसे वह मुंहमांगे दामों पर बेच रहे हैं |हर दवाई – इंजैक्शन के विकल्प मार्केट में उपलब्ध है | उपभोक्ता को जागरुकता का परिचय देते हुए उन विकल्पों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे कालाबाजारी कुछ हद तक कम हो सकती है |
प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को जल्दी से जल्दी चेतना होगा |
प्रशासन को बिचौलियों को बीच में घुसने ही नहीं देना चाहिए| सरकार को कोवैक्सीन की तरह ही हर वस्तु ,चाहे वह दवा हो, ऑक्सीजन सिलेंडर /किट, हॉस्पिटल के बेड आदि की कीमत तय करनी चाहिए |
कानून को सख्त बना देना चाहिए| अधिक पैसे ऐंठने वाले और जमाखोरी करने वालों के खिलाफ तुरंत सख्त कार्यवाही करनी चाहिए|
इस समय पर पत्रकारों- साहित्यकारों की भूमिका बहुत अहम हो सकती है |
उन्हें कालाबाजारी करने वालों के नाम समाज के सामने उजागर करना चाहिए |
और अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगी
” प्रकृति नहीं पराई ,यह तो जाई है
क्रुद्ध हो दी सजा ऐसी ,जिसकी ना भरपाई है
उजाड़े वृक्ष जितने ,लील लिए उसने उतने
फिर भी नहीं समझ रहा मानव, ऐ दविंदर ” तू हरजाई है
अब भी ना चेता तो, तेरी शामत आई है |
डॉ. दविंदर कौर होरा
इंदौर ,मध्य प्रदेश
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मौत के सौदागर
“द्वारे खड़ी कर रही इंतजार अर्थी
बड़ी लंबी लगी है लाइन कब्रगाहों में
सांसो का हो रहा व्यापार दविंदर
आज बोली लगी मुर्दों की अस्पतालों में
विश्व में त्राहि-त्राहि मची हुई है|
मनुष्य कटे वृक्ष की तरह गिर रहे हैं | एक सांस आने के बाद अगली सांस नसीब होगी कि नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है |
पिछले वर्ष 2020 से अब तक विश्व में करोड़ों लोग कोविड कोरोना 19 की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं | जब नया-नया वायरस का संक्रमण आया था , तब लगा था कि पृथ्वी पर पाप बढ़ गया है| सब एकजुट होकर रहने लगे थे |
हर व्यक्ति एक- दूसरे की मदद के लिए हाथ बढ़ा रहा था |
कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो सब बीमारी से जूझने और उससे निजात पाने की कोशिश में लगे हुए थे |आस -पड़ोस वालों का ध्यान रखने , कथा -कीर्तन, लंगर लगवा कर सब प्रायश्चित कर रहे थे | और उम्मीद थी कि सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जाएगा |
लेकिन जाने कहां से कोरोना की दूसरी लहर आते-आते भ्रष्टाचार की हवा बहने लगी| दवाइयों की कालाबाजारी , ऑक्सीजन की कालाबाजारी ,इंजेक्शन की कालाबाजारी |
समाज व प्रशासन दोनों इन काला बाजारियों के आगे फेल होते हुए नजर आ रहे हैं |
संवेदना का यूं मर जाना और मरते व्यक्ति से उसका अधिकार छीन कर अपनी तिजोरी भर लेना |कौन सी मानवता का उदाहरण पेश कर रहे हैं हम मनुष्य |
गिद्ध मास को नोच – नोच कर खाता है लेकिन वह भी जानवर के मरने का इंतजार करता है | लेकिन यहां विडंबना देखिए बीमारी में जहां डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है | उन पर आंखें मूंद कर विश्वास किया जाता है | क्या भगवान पर भला शक करता है कोई? नहीं ना.. लेकिन आज कल की तस्वीर उलट है | डॉक्टर मरीज को बचाने में दिन – रात एक कर देते हैं लेकिन देश के प्रख्यात न्यूरो सर्जन को पुलिस ने रेमडेसिविर के 70 इंजेक्शन और 36 लाख रुपए नगद के साथ पकड़ा है वह ₹48 हजार रुपये में एक इंजेक्शन बेच रहे थे | यह डॉक्टर हजरत निजामुद्दीन के रहने वाले हैं | और इनका नाम मोहम्मद अल्तमश है |यह एम्स में डॉक्टर रहे हैं |
आप इन्हें गिद्ध नहीं कहेंगे , क्योंकि यह जानवर का अपमान होगा |
इसी तरह सूरत के डॉक्टर हितेश डाबी और डॉक्टर साहिल चौधरी भी रेमदेसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करते गिरफ्तार हुए| कोर्ट ने उन्हें 15 दिन तक कोविड-19 हॉस्पिटल में ड्यूटी करने की सजा सुनाई है|
ऑक्सीजन जीव जगत के लिए अनिवार्य वायु है | यदि एक क्षण के लिए भी यह वायुमंडल से गायब हो जाए तो आधी सृष्टि खत्म हो जाएगी | ऑक्सीजन जिसे प्रकृति ने हमें मुफ्त का उपहार दिया और हम अज्ञानी मानव ने वृक्ष काटकर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चला ली | आज उसका भी व्यापार और कालाबाजारी जोरों पर है |
लोग एक – एक सांस के लिए संघर्ष कर रहे हैं | परिवार के सदस्य अपनों को बचाने की जद्दोजहद में भूखे – प्यासे लाइनों में खड़े हैं| किसी को ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए | किसी को किट तो किसी को बस कुछ सांसे भर हवा |
लेकिन विडंबना देखिए, प्रकृति ने जिसे धरा से अंबर तक मुफ्त का उपहार दिया है उसे ही बंद डब्बे में पाने के लिए लोग बिलख रहे हैं | सड़कों पर ,अस्पताल में, एंबुलेंस, कार में निरीह – बेबस एक – एक सांस के लिए बिलख रहे हैं | बिना पानी की मछली की तरह तड़प – तड़प कर सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं | वहीं कुछ स्वार्थी इस आपदा के समय में अपना मुनाफा कमाने में लगे हैं|
सबसे ज्यादा संकट इस समय पर जीवनदायिनी वायु का है | और इससे कमाने वाले अधर्मियों की बाढ़ सी आई है |
अस्पताल में बिस्तर का अभाव तो है ही, बिल इतने ज्यादा आ रहे हैं कि लोग गुलामों की तरह खुद बिक रहे हैं अपनों को बचाने की खातिर | लेकिन यहाँ भी विडंबना देखिए कि लाखों रूपये खर्च कर खुद को बेच कर अंत में कफन में लिपटी लाश मिल रही है|
लकड़ी -कंडा ,शमशान ,एंबुलेंस, हार -फूल ,नारियल सभी सोने के भाव बिक रहे हैं|
इंसानियत के नाम पर धब्बा इन कालाबाजारियों को सोचना चाहिए कि आखिर वह भी एक दिन इसी सफर पर जाएंगे ,तब उन्हें अपने कर्मों का जवाब देना पड़ेगा | सिर्फ उन्हें ही नहीं उनकी संतानों को भी इस कर्म की सजा मिलेगी| क्योंकि वह अपने परिवार को और बच्चों को हैवानियत का भागीदार बना रहे हैं |
लाशों के ढेर पर व्यापार करने वाले बेईमानों की आत्मा मर चुकी है | उजड़ते परिवारों , बिलखते दुधमुंहे बच्चों के मुख से निवाला छीन कर कुत्सित प्राणी सिर्फ अपना मुनाफा कमा रहे हैं |
खुद के सिर पर डोलता काल का बवंडर उन्हें नजर नहीं आ रहा|
पिछले साल से लोगों के काम – धंधे बंद पड़े हैं |लोग आर्थिक रूप से पहले ही टूटे हुए हैं | वहां इस तरह सांसों के नाम पर और मुर्दों को जलाने के नाम पर होते धोखे के लिए लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है | उन्हें समझना होगा कि वस्तुओं की कृत्रिम रूप से जमाखोरी की गई है, जिसे वह मुंहमांगे दामों पर बेच रहे हैं |हर दवाई – इंजैक्शन के विकल्प मार्केट में उपलब्ध है | उपभोक्ता को जागरुकता का परिचय देते हुए उन विकल्पों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे कालाबाजारी कुछ हद तक कम हो सकती है |
प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को जल्दी से जल्दी चेतना होगा |
प्रशासन को बिचौलियों को बीच में घुसने ही नहीं देना चाहिए| सरकार को कोवैक्सीन की तरह ही हर वस्तु ,चाहे वह दवा हो, ऑक्सीजन सिलेंडर /किट, हॉस्पिटल के बेड आदि की कीमत तय करनी चाहिए |
कानून को सख्त बना देना चाहिए| अधिक पैसे ऐंठने वाले और जमाखोरी करने वालों के खिलाफ तुरंत सख्त कार्यवाही करनी चाहिए|
इस समय पर पत्रकारों- साहित्यकारों की भूमिका बहुत अहम हो सकती है |
उन्हें कालाबाजारी करने वालों के नाम समाज के सामने उजागर करना चाहिए |
और अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगी
” प्रकृति नहीं पराई ,यह तो जाई है
क्रुद्ध हो दी सजा ऐसी ,जिसकी ना भरपाई है
उजाड़े वृक्ष जितने ,लील लिए उसने उतने
फिर भी नहीं समझ रहा मानव, ऐ दविंदर ” तू हरजाई है
अब भी ना चेता तो, तेरी शामत आई है |
डॉ. दविंदर कौर होरा
इंदौर ,मध्य प्रदेश
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