हिन्दी पत्रकारिता के प्रवर्तक के नाम पर होगा आईआईएमसी का पुस्तकालय

 हिन्दी पत्रकारिता के प्रवर्तक के नाम पर होगा आईआईएमसी का पुस्तकालय

प्रकाशनार्थ
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हिंदी पत्रकारिता के प्रवर्तक के नाम पर होगा आईआईएमसी का पुस्तकालय

देश में पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर बनेगा पहला स्मारक

नई दिल्ली, 14 जून। भारतीय जन संचार संस्थान का पुस्तकालय अब पं. युगल किशोर शुक्ल ग्रंथालय एवं ज्ञान संसाधन केंद्र के नाम से जाना जाएगा। हिंदी पत्रकारिता के प्रवर्तक पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम पर यह देश का पहला स्मारक होगा। पुस्तकालय के नामकरण के अवसर पर आईआईएमसी द्वारा 17 जून को “हिंदी पत्रकारिता की प्रथम प्रतिज्ञा: हिंदुस्तानियों के हित के हेत” विषय पर एक विशेष विमर्श का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में देश के प्रमुख विद्वान अपने विचार व्यक्त करेंगे।

आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने बताया कि इस वेबिनार में दैनिक जागरण (दिल्ली-एनसीआर) के संपादक श्री विष्णु प्रकाश त्रिपाठी मुख्य अतिथि होंगे तथा पद्मश्री से अलंकृत वरिष्ठ पत्रकार श्री विजयदत्त श्रीधर मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल होंगे। कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ताओं के रूप में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की निदेशक डॉ. सोनाली नरगुंदे, पांडिचेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सी. जय शंकर बाबु, कोलकाता प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री स्नेहाशीष सुर एवं आईआईएमसी, ढेंकनाल केंद्र के निदेशक प्रो. मृणाल चटर्जी अपने विचार प्रकट करेंगे।

प्रो. द्विवेदी ने इस आयोजन के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत पं. युगल किशोर शुक्ल द्वारा 30 मई, 1826 को कोलकाता से प्रकाशित समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ से हुई थी। इसलिए 30 मई को पूरे देश में हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि ‘उदन्त मार्तण्ड’ का ध्येय वाक्य था, ‘हिंदुस्तानियों के हित के हेत’ और इस एक वाक्य में भारत की पत्रकारिता का मूल्यबोध स्पष्ट रूप में दिखाई देता है।

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि ये हमारे लिए बड़े गर्व का विषय है कि आईआईएमसी का पुस्तकालय अब पं. युगल किशोर शुक्ल के नाम से जाना जाएगा। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता ने स्वाधीनता से लेकर आम आदमी के अधिकारों तक की लड़ाई लड़ी है। समय के साथ पत्रकारिता के मायने और उद्देश्य चाहे बदलते रहे हों, लेकिन हिंदी पत्रकारिता पर देश के लोगों का विश्वास आज भी है।

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