कविता ऊर्जा के दूत चांद

कविता ऊर्जा के दूत चांद

मेरी ऊर्जा के दूत  –  चांद
ब्रह्मांड भरा गगनअठखेलिया करते  अकेले तुमकभी ले आते हो ईदकभी बन जाते हो करवाचौथकभी शरद मुस्काता है तुम्हारे चेहरे परतो कभी खो जाते होअमावस्या सी कालिख मेंलुकते छिपते घटते बढ़तेबन जाते हो कभी तिथिकभी दिनकभी छुप जाते होबादलों की ओट मेंकभी बरसा देते हो आँचल भर नीरकभी बन जाते हो सीप का मोतीतो कभी बन जाते होचातक की प्यासकभी अस्त मत होना जीवन की किसी भी सांझ में क्योंकि तुम रोशनी देते हो जलाते नही
कॉपीराइटडॉ सीमा शाहजीसहायक प्राध्यापक हिंदी थांदला जिला झाबुआ मप्र

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